2 अकटुबर गांधी जयंती : महात्मा गांधी का चिंतन सत्कर्मो की सुवास से महकता गुलदस्ता था

2nd October Gandhi Jayanti 2nd October Gandhi Jayanti
संपादकीय: 2nd October Gandhi Jayanti :  भारतीय इतिहास में दो अक्टूबर का दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसे चैत्र सुदी तेरस के दिन भगवान महावीर, वैशाखी पूर्णिमा के दिन महात्मा बुद्ध, चैत्र सुदी नवमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम और भाद्रव कृष्ण अष्टमी के दिन श्रीकृष्ण का इस धरा पर अवतरण हुआ था।  उसी प्रकार दो अक्टूबर का दिन पराधीन भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास में एक स्वर्ण किरण बनकर आया।
आज के दिन जिस महापुरुषों ने जन्म लिया वह साधारण मानव ही था, किन्तु उस दुबली-पतली-सी काया में असाधारण आत्मबल, अद्भुत मनोबल का एक पूंजीभूत प्रकाश छिपा था, जिसकी प्रकाश किरणों ने दासता दुर्बलता, अज्ञान और अशिक्षा के घनीभूत अंधकार को चीर कर सम्पूर्ण एशिया खंड में स्वतन्त्रता, स्वाधीनता, अहिंसा और देश प्रेम का आलोक भर दिया।
भारतीय जीवन के सुप्त आत्मविश्वास को जगा दिया। उसने सिद्ध कर दिया कि हिंसा, आतंक, लूट और भय आधार पर टिकी सत्ता, बन्दूक, तलवार और बमों के बल पर भोली प्रजा का शोषण करने वाली विदेशी ताकत अहिंसा और सत्य, देशप्रेम और आत्म-बलिदान की महाशक्ति के समक्ष टिक नहीं सकती।

2nd October Gandhi Jayanti : गाँधीजी का जीवन सद्गुणों का सत्संकल्पों का एक प्रेरणा स्रोत

गाँधीजी का जीवन सद्गुणों का सत्संकल्पों का एक प्रेरणा स्रोत था। उनके विचार, उनका आचार, उनके संस्कार और उनका व्यवहार सत्य ,अहिंसा, स्वावलम्बन, सादगी और सदाचार का मूर्तिमंत स्वरूप था। गाँधी का चरित्र, गाँधी का चिन्तन सत्कर्मों की सुवास से महकता गुलदस्ता था। उनके सम्पर्क में आने वाले सैंकड़ों-हजारों कार्यकर्ताओं का जीवन सद्‌गुणों व स‌द्विचारों की सुवास से महक उठा था।  गाँधीजी के अनुयायी थे- विनोबा भावे, डॉ. राजेन्द्रप्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल आदि।
2nd October Gandhi Jayanti उनका जीवन तो राष्ट्र के लिए प्रकाशपुंज बना ही किन्तु केवल गाँधीजी के निकट रहने वालों का, उनके क्षणिक संपर्क में आने वालों का जीवन भी उनके सद्विचारों की सुगंध से महकने लग गया था। गुजरात के पोरबन्दर शहर में एक धार्मिक गुजराती परिवार में दो अक्टूबर के दिन जिस तेजस्वी बालक का जन्म हुआ उसका नाम था मोहनदास ।  लोग उसे मोहनदास कर्मचन्द गाँधी के नाम से जानने लगे। बालक मोहनदास जन्म से ही कुछ विलक्षण गुणों का पुंज था।
माता-पिता के संस्कार, परिवार के वातावरण से प्रभावित होकर उसमें जन्म से ही सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, कर्त्तव्य भावना और संकल्पशीलता के सद्‌गुणों का विकास हुआ। यूं तो माता के गर्भ से सभी व्यक्ति एक शिशु के रूप में जन्म लेते हैं। जन्म लेते ही कोई महापुरुष या बड़ा आदमी नहीं होता।
2nd October Gandhi Jayanti
कांतिलाल मांडोत
2nd October Gandhi Jayanti : जिस प्रकार छोटे-छोटे वाक्यों से महाग्रन्थ बनता है। छोटी-छोटी काव्य पंक्तियों से महाकाव्य बनता है। छोटी-छोटी लकीरों से सुन्दर भव्य चित्र बनता है।
एक-एक ईंट जुटकर विशाल भवन बन जाता है, उसी प्रकार एक-एक छोटा-छोटा सद्गुण, जीवन के प्रति सतर्कता, निष्ठा और कर्त्तव्य के प्रति समर्पण की छोटी-छोटी बातें ही साधारण व्यक्ति को असाधारण महापुरुष बनाती है।

गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है- ‘मुझे गाँधी से बापू तक पहुँचाने में इन दोनों का अविस्मरणीय योगदान

2nd October Gandhi Jayanti मोहनदास को महात्मा गाँधी बनाने में उनकी माता का तो प्रभाव था ही, किन्तु उसके साथ उनके जीवन निर्माण में दो और सत्पुरुषों का अविस्मरणीय योगदान रहा।
एक-गुजरात में विराजित स्थानकवासी जैन संत बेचरदासजी, जिन्होंने विदेश जाते समय उन्हें मांस-सेवन और पर-स्त्रीगमन का नियम दिलाया और दूसरे थे श्रीमद् राजचन्द्र। गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है- ‘मुझे गाँधी से बापू तक पहुँचाने में इन दोनों का अविस्मरणीय योगदान है।’
2nd October Gandhi Jayanti : महात्मा गाँधी के जीवन का हम अध्ययन करें, उनका चरित्र पढ़ें तो पता चलेगा कि वे छोटे-छोटे कार्यों में भी हर समय सतर्क व जागरूक रहते थे। प्रत्येक बात में अपने सिद्धांत और आदर्श को सामने रखते थे। वे काम को केवल वर्तमान की दृष्टि से नहीं, किन्तु दूर भविष्य की दृष्टि से तोलते थे। उनकी सोच दूरगामी थी। एक कंकर फैंकने से पानी की लहरें उत्पन्न होती है और वह धीरे-धीरे समूचे तालाब को स्पन्दित-तरंगित कर देती है।

गांधी -दर्शन विश्व से, कभी नहीं मिट सकता

एक तिनका निकालने से झौंपड़ी का एक छोटा-सा भाग की खाली नहीं होता, किन्तु झौंपड़ी की पूरी सघनता को चरमरा देता है। एक ईंट निकालने से विशाल भवन में क्या फर्क पड़ता है, परन्तु धीरे-धीरे वह पूरी बिल्डिंग को हिला देता है। यही सिद्धांत जीवन का है और गाँधीजी इसी सिद्धांत को मानते थे, जीते थे। वे जीवन की छोटी-छोटी बातों में अत्यन्त सावधान और सजग रहते थे। उसके दूरगामी परिणामों का विचार करते थे।
2nd October Gandhi Jayanti : सन 1909की बात है। अफ्रीका में सत्याग्रह आन्दोलन सफलता पूर्वक चलाकर वे किसी कार्य से लन्दन गये थे। लन्दन में कई भारतीय नवयुवक पढ़ते थे। उनके प्रवास के समय भारतीय छात्रों ने एक समारोह का आयोजन किया। उस समारोह में पहले भोजन और फिर भाषण का कार्यक्रम रखा गया। इसके अध्यक्ष बनाये गये गाँधीजी को। गाँधीजी ने भोज में भी शामिल होना स्वीकार कर लिया पर शर्त यह रखी कि भोज में मांस नहीं रखा जायेगा।
युवकों ने शर्त मान ली और एक हॉल किराये पर लेकर भोजन का प्रबन्ध करने लगे। छात्रों ने सारा काम अपने ही हाथों से किया। इसी बीच गाँधीजी भी वहाँ पहुँच गये और चुपचाप बर्तन माँजने लगे। वहाँ उपस्थित विद्यार्थियों में से उन्हें कोई भी नहीं पहचानता था। गाँधीजी बिना अपना परिचय दिये आरम्भ से आखिर तक बर्तन माँजने में लगे रहे। जब सारी तैयारियाँ हो गयीं तो सभा के उपप्रधान वहाँ आये, वे गाँधीजी को पहचानते थे।

गाँधीजी वाणी से कम, आचरण से ही उपदेश देते थे और उसका प्रभाव भी स्थायी पड़ता था

2nd October Gandhi Jayanti पहचान कर उन्होंने जैसे ही विद्यार्थियों को उनका परिचय दिया, विद्यार्थी दंग रह गये। छात्रों ने गाँधीजी को यह काम करने से बहुत रोका, पर उन्होंने काम नहीं छोड़ा। इसी प्रकार आश्रम में भी बापू ने स्वयं के आचरण द्वारा वहाँ के कार्यकर्ताओं को दैनिक जीवनचर्या में स्वावलम्बी बनना सिखाया था।
मौखिक रूप से उन्होंने किसी से नहीं कहा कि अपना काम अपने हाथ से करें, बल्कि जिस तरह की रीति-नीति उन्होंने अपनायी उससे स्वभावतः सब लोग यह नियम अपनाने के लिए बाध्य हो गए। गाँधीजी वाणी से कम, आचरण से ही उपदेश देते थे और उसका प्रभाव भी स्थायी पड़ता था ।

गाँधीवाद का वर्णन किया जाए तो एक बड़ा ग्रंथ भी छोटा पड़ेगा

2nd October Gandhi Jayanti : गाँधीजी के अनुकरणीय गुणों का, उनके जीवन-दर्शन का, वस्तुतः गाँधीवाद का वर्णन किया जाए तो एक बड़ा ग्रंथ भी छोटा पड़ेगा। गाँधीजी का जीवन सत्य-अहिंसा-प्रेम की एक जीती-जागती प्रयोगशाला थी। भगवान महावीर के छब्बीसों वर्षों बाद उनकी अहिंसा को जितनी सूक्ष्मता और सार्वभौमता के साथ गाँधीजी ने समझा और समझदार जीवन में प्रयोग किया, अहिंसा की अजेय शक्ति से संसार को परिचित कराया, वह अपने आप में महत्वपूर्ण है।
उनके जैसी दृढ़ संकल्पशीलता, नियम निष्ठा, ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा और जनता जनार्दन के प्रति सेवा व स‌द्भावना अद्भुत थी। सच पूछो तो उनकी हिमालय-सी संकल्प दृढ़ता ने ही दो सौ वर्षों से राज करती दुर्दान्त विदेशी सत्ता की जड़े हिला दीं। कहावत है ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ परन्तु इस कहावत को झूठी कर दिया गाँधी ने।
2nd October Gandhi Jayanti अकेले गाँधी ने भारत की सुप्त आत्मा को जगा दिया। देश की अस्मिता को प्रचण्ड बना दिया। अकेली एक चिनगारी ने ब्रिटिश सत्ता के महावन को जलाकर राख कर डाला। सत्य अहिंसा की एक ही हथौड़ी ने गुलामी और पराधीनता की बेड़ियों को तोड़कर चूर-चूर कर दिया।
  यह बल उनके दुबले-पतले शरीर का नहीं, किन्तु सुदृढ़ जागृत आत्मा का था। सत्य, अहिंसा का बल था। आज गाँधी जयन्ती के दिन हम उनके चरित्र की छोटी-छोटी बातों का स्मरण कर उनसे प्रेरणा लें तो हमारे भीतर भी एक गाँधी जैसा पौरूष पैदा हो सकता है।
2nd October Gandhi Jayanti आने वाली पीढ़ियाँ शायद यह विश्वास भी करें या न करें कि ‘गाँधी नाम का एक ऐसा व्यक्ति भी हुआ था जिसने अकेले ही बिना तीर-तलवार के, बिना जादू-टोने के इतनी विशाल ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंका और भारतमाता को स्वतन्त्रता के गौरव से मण्डित किया।’
एक व्यक्ति ने हजारों त्यागी, बलिदानी, विद्वानों और देशभक्तों की एक फौज खड़ी कर दी। यह सब एक चमत्कार से कम नहीं है। संसार चमत्कार को नमस्कार करता है। गाँधीजी ने सचमुच एक चमत्कार पैदा कर दिया। आज हम उस सत्य, अहिंसा के चमत्कारी पुरुष को याद करके प्रेरणाएँ लें। यही गाँधी जयंती का सन्देश है।
2nd October Gandhi Jayanti महात्मा गांधी और तत्कालीन गण्यमान्य राष्ट्रनेताओं के विचारों के आशादीप उन्हीं के साथ बुझ गये। स्वराज्य तो आया, मगर सुराज्य नहीं आया। गांधी के रामराज्य का सपना हे राम ! हे राम ! कहते-कहते उनकी मृत्यु के साथ ही नष्ट हो गया।
हम उजाले के लिए निकले और अँधेरा ले आये, तो यह दोष किसका है ? जोश में हम होश भूल गये। रामराज्य के स्थान पर रावण-राज्य का दृश्य उपस्थित हो गया।लूटमार, हत्या, डकैती, बलात्कार व आतंक के राक्षस अपने पंजे फैला रहे हैं। भुला दिया है हमने राम को, उन राम को, जो भारतीय संस्कृति के महामानव थे।
2nd October Gandhi Jayanti : जिन पर भारतीय संस्कृति को गर्व रहा है। राम आज भी एक जाज्वल्यमान प्रकाश-स्तंभ हैं, जिनकी प्रकाश-किरणें सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति की वैदिक व श्रमण धारा को प्रकाशित कर रही हैं। भूले-भटके राहियों का मार्ग प्रदर्शन कर रही हैं। भारत-भूमि के करोड़ों नर-नारी श्रद्धा के साथ श्रीराम का स्मरण करके स्वयं को धन्य समझ रहे हैं। वह इसलिए कि उनका शासनकाल भारतीयों के लिए स्वर्णिम काल था। सब प्रसन्न थे उस काल में, सच का सम्मान व झूठ को दण्ड था रामराज्य में।
हमें प्रसन्न रहना है तो पुनः अतीत की ओर लौटना होगा। जाना होगा रामराज्य की ओर, और देना होगा समाज को उसका व्यक्तित्व और उसका अपना अधिकार। क्या इसके लिए हमने व सरकार ने कुछ किया है?आज हम उस सत्य, अहिंसा के चमत्कारी पुरुष को याद करके प्रेरणाएँ लें। यही गाँधी जयंती का सन्देश है। अंततः देश मे गांधी के विचार और देश के लिए लिए गए निर्णय से लोगो के मन मे विरोधाभास चल रहा है।लेकिन उनकी कुछ मजबूरियां भी रही होगी।
लेखक – कांतिलाल मांडोत
(यह लेख लेखक के अपने मौलिक एवं स्वतंत्र विचार है । )