फल की आकांक्षा से मुक्त होकर कर्म करना ही यज्ञ है – परम पूज्य गुरुदेव संकर्षण शरण जी

Geeta Gyan Amrit Varsha Geeta Gyan Amrit Varsha By Shri Sankarshan Sharan Ji ( Guru Ji )

रायपुर : Geeta Gyan Amrit Varsha :  छत्तीसगढ़ नगर सरस्वती शिक्षा मंदिर में हो रहे गीता ज्ञान अमृत वर्षा कथा में परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) आज कर्म और यज्ञ के बारे में बताएं, गुरुजी यह बताएं कि यज्ञ एक प्रक्रियाची कर्म है। यज्ञ में कर्तापन का भाव नहीं होनी चाहिए उसमें अहंकार नहीं होना चाहिए।

Geeta Gyan Amrit Varsha : हमे अंदर और बाहर दोनों जगह यज्ञ की आवश्यकता होती है

हमे अंदर और बाहर दोनों जगह यज्ञ की आवश्यकता होती है, बाहर का यज्ञ जब हम हवन कुंड में जौ , तिल, नारियल, चावल ,घी आदि से हवन करते हैं, जो की बाह्य यज्ञ होता है, और अंदर से भी यज्ञ करना अर्थात अपने विकारों को मिटाना , ईर्ष्या, क्रोध, लोभ,मोह, अहंकार ,इत्यादि दुर्गुण को समाप्त करना। तब अंदर भी यज्ञ होता है।

Geeta Gyan Amrit Varsha :  जैसे जौ ..जो सृष्टि का पहला अन्न है इसलिए कलश स्थापना में जौ डालते हैं जौ का अर्थ गुरुजी बताएं की हमारे अंदर की विकारों को नष्ट करना है, तिल… तिल से ईर्षा बढ़ती है, तिल का हवन करते समय हमें अपने अंदर की ईर्ष्या को भी परमात्मा को अर्पण कर देते हैं।

नारियल हमारे अंदर जीवित अहंकार का प्रतीक

नारियल.. जो कई परतों में होता है ,नारियल हमारे अंदर जीवित अहंकार का प्रतीक है, आपने देखा होगा नारियल अपने से कभी टूटता नहीं है नारियल को मेहनत करके तोड़ना पड़ता है। नारियल अर्पण करते समय मन में यह भाव होना चाहिए कि हम अपना अहंकार परमात्मा को अर्पण कर रहे हैं।

बेल .. हमारे अंदर की क्रोध का प्रतीक है

Geeta Gyan Amrit Varsha :  बेल .. हमारे अंदर की क्रोध का प्रतीक है, बेल का अर्पण करते समय क्रोध को परमात्मा को अर्पण करते हैं। जब हम जो कुछ भी पदार्थ अर्पण करते हैं तो अंदर के भाव को भी उसी तरह अर्पण करना होता है, तब आंतरिक यज्ञ होता है।

अर्थात मन, चेतना, हृदय, आत्मा की पवत्रता के लिए, जीवन में सुखी महसूस करने हेतु, मन से ख़ुश रहने के लिए, आंतरिक यज्ञ अति आवश्यक है। अंदर से पवित्र होते हैं, गुण और अवगुण सब तुमको अर्पण। बाहर के यज्ञ से पर्यावरण और प्रकृति शुद्ध होती है और आंतरिक यज्ञ से हम अंदर से शुद्ध होते हैं ।

हमारे अंदर से भी विकार नष्ट हो जाएंगे ,हम अंदर से शुद्ध हो जाएंगे

Geeta Gyan Amrit Varsha  :  जब हमारे अंदर से भी विकार नष्ट हो जाएंगे ,हम अंदर से शुद्ध हो जाएंगे तो अंदर भी शांति मिलेगी प्रसन्नता मिलेगी। साथ में यह बताएं कि कोई भी कार्य करते समय कर्तापन का बोध नहीं होना चाहिए सब कुछ परमात्मा को अर्पण करना चाहिए।

कोई भी कार्य किसी इच्छापूर्ति के लिए किया जाता है तो वह सकाम कर्म होता है, इस प्रकार के कर्म में हमारी जो इच्छाएं हैं वह पूर्ति हो जाती है लेकिन जब हम बिना किसी मांग के कर्म करते हैं तो वह निष्काम कर्म होता है और परमात्मा हमें आवश्यकता से कई गुना अधिक फल प्रदान करते हैं।

फल की आकांक्षा से मुक्त होकर निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए बिना किसी स्वार्थ के

Geeta Gyan Amrit Varsha :  इसलिए फल की आकांक्षा से मुक्त होकर निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए बिना किसी स्वार्थ के परोपकार की भावना से भावना से कर्म करना चाहिए। कर्म हमारे हाथ में होता है फल परमात्मा के हाथ में होता है, कर्म वर्तमान में होता है फल भविष्य में होता है इसलिए फल की आकांक्षा से मुक्त होकर कर्म करना चाहिए। वह कर्म यज्ञ की तरह होता है।

शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर बहुत से लोगों गुरु दीक्षा लिया 

Geeta Gyan Amrit Varsha : साथ ही आज शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर बहुत से लोग गुरूजी से आशीर्वाद प्राप्त कर गुरु दीक्षा लिए एवं गुरुमंत्र प्राप्त कर गुरु शिष्य परम्परा से जुड़ एक नव जीवन का सुखद आरंभ किए ।

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