Editorial । Shiva who is the Nature Himself Now : यह सत्य है कि भगवान भोलेनाथ जिन्हें हम श्रद्धापूर्वक ‘महादेव’ कहते हैं, कैलाश पर्वत पर विराजते हैं। किंतु उनका स्वरूप केवल कैलाश तक सीमित नहीं है वे ही प्रकृति के परिचायक हैं। शिव ही आदि हैं, अनंत हैं ! शिव स्वयं संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त हैं; प्रकृति का हर कण उनकी ही अभिव्यक्ति है, चाहे वह विशाल पर्वत हों, वनों की शीतल छाया, नदियों की कल-कल ध्वनि, घने जंगल हों या फिर छोटे से पुष्प की सुंदरता और समस्त प्राणियों के भीतर का जीवन सबमें उनकी उपस्थिति का अनुभव होता है।
प्रकृति और मनुष्य एक-दूसरे से अविभाज्य रूप
Shiva who is the Nature Himself Now : यह समझना होगा कि प्रकृति और मनुष्य एक-दूसरे से अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं। प्रकृति का संतुलन बिगड़ने का सीधा प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन, जल संकट, प्रदूषण और प्राकृतिक आपदाएं इसी असंतुलन के परिणाम हैं। जब हम जंगलों को काटते हैं, तो हम न केवल पेड़ों को नष्ट करते हैं, बल्कि मिट्टी के कटाव को बढ़ाते हैं, जल स्रोतों को सुखाते हैं और जैव विविधता को खतरे में डालते हैं।
भगवान शिव, जो स्वयं प्रकृति के परिचायक हैं, हमें यही सिखाते हैं कि प्रकृति का सम्मान करना और उसके साथ सामंजस्य बनाए रखना ही जीवन का मार्ग है। उनकी जटाओं से निकलती गंगा नदी पवित्रता और जीवन दायिनी शक्ति का प्रतीक है। उनका त्रिशूल प्रकृति के तीन गुणों – सत्व, रज और तम – का संतुलन दर्शाता है।
Shiva who is the Nature Himself Now : प्रकृति की यह दिव्यता हर युग में मानव जीवन का आधार
प्रकृति की यह दिव्यता हर युग में मानव जीवन का आधार रही है। लेकिन वर्तमान समय में मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर रहा है। यह विडंबना ही है कि जिस प्रकृति में हम शिव का दर्शन करते हैं, उसी प्रकृति को हम अपने स्वार्थ के लिए नष्ट करने पर तुले हैं। यह प्रकृति का दोहन वास्तव में अपने ही विनाश को निमंत्रण देना है।
वर्तमान में हम कई स्थानों पर इस विनाश के प्रत्यक्ष उदाहरण देख सकते हैं। आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर जंगलों को काटकर भारी उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं। इससे न केवल जैव विविधता को खतरा उत्पन्न हुआ है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी लगातार बढ़ रहा है।
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Shiva who is the Nature Himself Now : पेड़ों की अंधाधुंध कटाई
इसी तरह तेलंगाना राज्य के कांचा गाचीबोवली क्षेत्र में लगभग 400 एकड़ भूमि पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एक और ज्वलंत उदाहरण बनकर सामने आई है। हरित क्षेत्र, जो कभी जीवनदायिनी शुद्ध वायु का स्रोत था, आज विकास के नाम पर उजड़ता जा रहा है। इस अंधाधुंध कटाई से न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ गया है, बल्कि क्षेत्र के तापमान में वृद्धि और जल संकट जैसी समस्याएँ भी भविष्य में विकराल रूप ले सकती हैं।
Shiva who is the Nature Himself Now : पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनना होगा
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी विकास की अवधारणा पर पुनर्विचार करें। हमें ऐसे विकास मॉडल को अपनाना होगा जो प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व पर आधारित हो। उद्योगों की स्थापना करते समय पर्यावरण के संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी। वनों का संरक्षण करना होगा, जल स्रोतों को बचाना होगा और प्रदूषण को नियंत्रित करना होगा।
यह केवल सरकारों और उद्योगों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भूमिका निभानी होगी। हमें अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा, प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनना होगा।
Shiva who is the Nature Himself Now : भगवान शिव हमें यही सिखाता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य ही सच्ची पूजा
यदि हम अब भी नहीं चेते और प्रकृति का दोहन जारी रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब यह हरी-भरी धरती बंजर हो जाएगी और जीवन दुर्लभ हो जाएगा। भगवान शिव, जो प्रकृति के कण-कण में व्याप्त हैं, हमें इस विनाशकारी मार्ग से बचने और प्रकृति के साथ प्रेम और सम्मान का संबंध स्थापित करने की प्रेरणा दें। यही सच्ची शिव आराधना है और यही हमारे भविष्य को सुरक्षित रखने का एकमात्र मार्ग है।
वनों का विनाश केवल प्राकृतिक सुंदरता की हानि नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के आधारभूत तत्वों जल, वायु और भूमि के संतुलन को भी छिन्न-भिन्न कर रहा है।
भगवान शिव का संदेश हमें यही सिखाता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य ही सच्ची समृद्धि है। वे स्वयं वनों के स्वामी (“वनराज”) हैं, जो हमें संयम, संतुलन और संरक्षण का मार्ग दिखाते हैं। आज आवश्यकता है कि हम जागें और अपनी नीतियों तथा कार्यों में प्रकृति संरक्षण को सर्वोपरि स्थान दें। वृक्षारोपण, प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग और विकास व पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रकृति की रक्षा करना ही भगवान शिव की सच्ची पूजा है।
कल्पना शुक्ला लेखिका (एमएड फोर पीजी )
भगवान शिव ने कैलाश को ही अपना निवास स्थान क्यों चुना ?
जंगलों की अंधाधुंध कटाई ?